पितृदोष जन्म कुंडली में एक महत्वपूर्ण ग्रहण है जो व्यक्ति के जीवन पर गहरा प्रभाव डाल सकता है। जन्म कुंडली में जब राहु और केतु की स्थिति अशुभ होती है या सूर्य का राहु/केतु के साथ षडाष्टक (छह अथवा आठ) योग बन रहा हो या सूर्य की राहु/केतु के साथ युति हो तो इसे पितृदोष कहा जाता है। पितृदोष के कारण व्यक्ति का बुरा प्रभाव पितृगणों या उनके आत्माओं पर आ सकता है। यह दोष कई कारणों से उत्पन्न हो सकता है, जैसे कि पूर्वजों के श्राद्ध या तर्पण का न करना, किसी बुरे कर्म का करना, या वंश या पितृगणों का अपमान करना।
पितृदोष के प्रभाव कई प्रकार के हो सकते हैं। यह व्यक्ति के परिवार जीवन, नौकरी, स्वास्थ्य, और सामाजिक संबंधों पर अनियंत्रित प्रभाव डाल सकता है। पितृदोष के कारण व्यक्ति को धन, संतान, और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। इसके अलावा, इस दोष के कारण व्यक्ति को मनोवैज्ञानिक समस्याएं भी हो सकती हैं।
पितृदोष का समाधान कठिन हो सकता है, लेकिन वैदिक ज्योतिष और पौराणिक ग्रंथों में कई उपाय वर्णित हैं। कुंडली में राहु और केतु की शुभ ग्रहों के साथ योग कराने के लिए पूजा, दान, और मंत्र जप की विधियां उपयोगी हो सकती हैं। विशेष रूप से पितृ दोष निवारण के लिए काल सर्प दोष की पूजा की जा सकती है। पितृदोष के निवारण के लिए पितृ-गायत्री का पाठ श्रद्धापूर्वक करवाना चाहिए।
पितृ-गायत्री मंत्र…
ॐ देवताभ्य: पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च।
नम: स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नम:।
ॐ आद्य-भूताय विद्महे सर्व-सेव्याय धीमहि।
शिव-शक्ति-स्वरूपेण पितृ-देव प्रचोदयात्।
वैदिक ज्योतिष में, ग्रहों के योग्य उपायों का पालन करने से व्यक्ति अपने जीवन में संतुष्टि और सफलता प्राप्त कर सकता है। पितृदोष के उपयुक्त निवारण हेतु आप ग्राहस्त्रो के विद्वान ज्योतिषाचार्यों से जन्म कुंडली के आधार पर समस्या का समाधान करवा सकते हैं।